Tuesday, September 24, 2013

मुक्तक : 347 - प्यार के चक्कर में



प्यार के चक्कर में बेघरबार होकर ख़ुश रहूँ ॥
मैं हूँ पागल इश्क़ की बीमार होकर ख़ुश रहूँ ॥
बज़्म,मजलिस,अंजुमन,पुरशोर-महफ़िल से जुदा ,
बेज़ुबाँ वीराँ में गुमसुम नार होकर ख़ुश रहूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...