Sunday, September 15, 2013

मुक्तक : 338 - बर्बाद मेरी हस्ती


बर्बाद मेरी हस्ती को सँवार दिया था ॥
यों डूबती कश्ती को पार उतार दिया था ॥
मुझ जैसे गिरे क़ाबिले-नफ़रत को उठा जब ,
मजनूँ को जैसे लैला वाला प्यार दिया था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...