Wednesday, September 18, 2013

मुक्तक : 340 - पुरग़ज़ब सादा


पुरग़ज़ब सादा हर इक उनका लिबास ॥
देखने में भी नहीं वो ख़ूब-ओ-ख़ास ॥
फ़िर भी जाने कैसा है उनमें खिँचाव ?
मैं चला जाता हूँ खिँँचता उनके पास ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...