Sunday, September 29, 2013

मुक्तक : 352 - कैसा पागल


कैसा पागल बादल है कहता है प्यासा हूँ ?
क्यों लबरेज़ समंदर बोले खाली कासा हूँ ?
किसके खौफ़ से आज बंद हैं मुँह बड़बोलों के ?
भारी भरकम टन ख़ुद को कहता है माशा हूँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Ghanshyam kumar said...

बहुत सुन्दर...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...