Sunday, September 1, 2013

104 : ग़ज़ल - कुछ ख़तावार कुछ गुनाहगार



कुछ ख़तावार , कुछ गुनाहगार होना था ।।
साफ़ होने को कुछ तो दाग़दार होना था ।।1।।
ताज जैसा ही आह ! एक सरफ़रोशोंं का ,
इस जहाँँ में कहीं अजब मज़ार होना था ।।2।।
सच ही होना था कामयाब गर सियासत में ,
खोल में गाय के तुम्हें सियार होना था ।।3।।
कैसे उनपे बरसते ? क्या न पहले से दिल में ,
उनकी ख़ातिर कहीं भरा ग़ुबार होना था ?4।।
पास होनीं थीं उनके कुछ निशानियाँ मेरी ,
मुझपे भी उनका कुछ तो यादगार होना था ।।5।।
मैं तो सौ जान से रहूँ सदा फ़िदा उन पर ,
मुझपे उनको भी ऐसा जाँनिसार होना था ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

3 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Darshan jangra जी ! मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने का !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अवश्य अवश्य Sriram Roy जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजीव कुमार झा जी !

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