Sunday, September 22, 2013

मुक्तक : 345 - रेग्ज़ारों की बियाबाँ


रेग्ज़ारों की बियाबाँ की हर डगर घूमा ॥
तनहा-तनहा,गली-गली,शहर-शहर घूमा ॥
मेरी तक़्दीर कि तक़्दीर में जो था ही नहीं ,
जुस्तजू में मैं उसी की ही उम्र भर घूमा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...