Thursday, September 5, 2013

मुक्तक : 326 - शिक्षा के मंदिर थे


शिक्षा के मंदिर थे जो आलय भी नहीं रहे ॥
शिक्षक पूर्वकाल से गरिमामय भी नहीं रहे ॥
दोहा गुरु-गोविंद खड़े दोऊ..... का व्यर्थ हुआ ,
शिक्षक के विद्यार्थियों में भय भी नहीं रहे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!


कृपया आप यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने का !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Darshan jangra जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...