शिक्षा के मंदिर थे
जो आलय भी नहीं रहे ॥
शिक्षक पूर्वकाल से गरिमामय भी नहीं रहे ॥
दोहा ‘
गुरु-गोविंद खड़े दोऊ.....’ का व्यर्थ हुआ ,
शिक्षक के विद्यार्थियों
में भय भी नहीं रहे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
कृपया आप यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13
धन्यवाद ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ! मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने का !
धन्यवाद ! Darshan jangra जी !
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