Saturday, September 7, 2013

मुक्तक : 328 - कभी कभार ही पीड़ा


कभी-कभार ही पीड़ा-दुःख को हर्ष अतिरेक कहा हो ॥
महामूढ़ता को चतुराई-बुद्धि-विवेक कहा हो ॥
उलटबाँसियाँ कहना यद्यपि रुचिकर तनिक न मुझको ,
तदपि विवशतावश ही कदाचित इक को अनेक कहा हो ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Anand murthy said...

bahut khoob sriman......

visit here also

anandkriti007.blogspot.com

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! anand murthy जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...