Saturday, September 7, 2013

मुक्तक : 330 - कैसे टूटेगा भला


( चित्र google search से साभार )
कैसे टूटेगा भला , हाथ-पाँव-सर कोई ?
गोटमार मेले में यदि , चले न पत्थर कोई ॥
तर्कहीन और खोखले , तजकर रीति-रिवाज़ ,
अपनाले जो लाभप्रद , परम्परा हर कोई ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजेंद्र कुमार जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...