Monday, September 9, 2013

मुक्तक : 332 - अंतरतम की पीड़


अंतरतम की पीड़ घनी हो होकर हर्ष बनी ॥
जीवन की लघु सरल क्रिया गुरुतर संघर्ष बनी ॥
तीव्र कटुक अनुभव की भट्टी में तप कर निखरा ,
मेरी आत्महीनता ही मेरा उत्कर्ष बनी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...