Thursday, April 2, 2015

मुक्तक : 687 - ‘ हाय ! थक चुका हूँ मैं ’




" सच चटक चुका हूँ मैं " , आईना ये बोलता ।।
" ख़ूब छक चुका हूँ मैं " , आईना ये बोलता ।।
सबके हू ब हू दिखा , अक़्स रोज़-रोज़ अब ;
" हाय ! थक चुका हूँ मैं " , आईना ये बोलता ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


2 comments:

कविता रावत said...

दर्पण झूठ न बोले ...
बहुत सुन्दर ..

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । Kavita Rawat जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...