Saturday, April 4, 2015

मुक्तक : 689 - तक्लीफ़-ओ-सितम

   

बदला न जानूँ किसका चुकाते रहे हैं वो ?
हँसने के वक़्त पर भी रुलाते रहे हैं वो ।।
तक्लीफ़-ओ-सितम , रंज-ओ-अलम , दर्द दर्द पे ,
दे-दे के मुझको लुत्फ़ उठाते रहे हैं वो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...