Friday, April 10, 2015

मुक्तक : 695 - संगमरमर का महल ?



घोर पतझड़ में भी वह क्यों खिल रहा है दोस्तों ?
क्या उसे अभिवांछित सब मिल रहा है दोस्तों ?
हो गया वह आज कैसे संगमरमर का महल ?
जो कि कल तक माँद या इक बिल रहा है दोस्तों !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...