इक लफ़्ज़ ग़म के नाम का नहीं ज़बान पर ॥
आँखेँ नहीं दिखाई दें कभी भी तर-ब-तर ॥
इस अश्क़ अफ़्साँ दनिया में तुम्हीं हो मुब्तसिम ,
सचमुच हो शादमाँ कि सिर्फ़ आओ तुम नज़र ?
( अश्क़ अफ़्साँ =रोने वाला ,मुब्तसिम=मुस्कुराने वाला ,शादमाँ=आनंदित
)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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