Thursday, April 30, 2015

मुक्तक : 705 - ग़म बड़े मिले ॥


बैठे कहीं , कहीं - कहीं खड़े-खड़े मिले ॥
कुछ ख़ुद ख़रीदे कुछ नसीब में जड़े मिले ॥
तिल-राई ज़िंदगी में ताड़ औ पहाड़ से ,
हँस-रो के ढोने दिल के सर को ग़म बड़े मिले ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...