नित निशि भर तारे उल्लू सा गिनता जगा रहा ॥
व्यर्थ सभी कर्मों के पीछे भगता लगा रहा ॥
सच कर्तव्यों , उत्तरदायित्वों से यहाँ-वहाँ ,
सिंह से बचती हिरणी सा मैं बचता भगा रहा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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