Friday, April 3, 2015

मुक्तक : 688 - नित निशि भर तारे


नित निशि भर तारे उल्लू सा गिनता जगा रहा ॥
व्यर्थ सभी कर्मों के पीछे भगता लगा रहा ॥
सच कर्तव्यों , उत्तरदायित्वों से यहाँ-वहाँ ,
सिंह से बचती हिरणी सा मैं बचता भगा रहा ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...