Friday, April 17, 2015

मुक्तक : 700 - फ़ौलाद मोम सा पिघले ॥


कभी जो बर्फ़ में फ़ौलाद मोम सा पिघले ।।
ग़ज़ाल शेर को ज़िंदा पटक उठा निगले ।।
भुला चुका हूँ उन्हें तुम ये मानना उस दिन ,
कि मेरी आँख से जिस दिन भी दर्या ना निकले ।।
( ग़ज़ाल=हिरण का बच्चा , दर्या=नदी )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...