Saturday, April 18, 2015

मुक्तक : 701 -तुझमें ख़राबी है ॥





फ़क़त इक ही मगर सबसे बड़ी तुझमें ख़राबी है ।।
ज़रा रुक ! सुन ! तुझे रहती हमेशा क्यों शिताबी है ?
सुनें क्यों होश वाले होश की बातें तेरी बतला ?
कि जब बदनाम तू इस शह्र में ख़ालिस शराबी है ।।
( फ़क़त=मात्र ,शिताबी=शीघ्रता , शह्र=नगर ,ख़ालिस=केवल और केवल )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-04-2015) को "अपनापन ही रिक्‍तता को भरता है" (चर्चा - 1950) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Onkar said...

वाह

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Onkar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...