Thursday, April 16, 2015

मुक्तक : 699 - नहीं रहता हूँ मैं अब होश में ?


मुझसी ग़फ़्लत तो नहीं होगी किसी मयनोश में ॥
पूछिए तो क्यों नहीं रहता हूँ मैं अब होश में ?
भागते थे जो मेरे साये से भी वो आजकल ,
बैठते हैं ख़ुद--ख़ुद आकर मेरी आगोश में ॥
( ग़फ़्लत=बेहोशी ,मयनोश =मदिरा-प्रेमी )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...