क़िला किसी को , किसी को मैं महल कहता हूँ ।।
किसी को चाँद , किसी रुख़ को कमल कहता हूँ ।।
सुने न ग़ौर से अल्फ़ाज़ मेरे
, कान उनके
बड़े ही शौक़ से फिर भी मैं
ग़ज़ल कहता हूँ ।।
-डॉ. हीरालाल
प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
1 comment:
धन्यवाद ! ऋषभ शुक्ल जी !
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