Monday, April 13, 2015

मुक्तक : 697 - मैं ग़ज़ल कहता हूँ ॥


क़िला किसी को , किसी को मैं महल कहता हूँ ।।
किसी को चाँद , किसी रुख़ को कमल कहता हूँ ।।
सुने न ग़ौर से अल्फ़ाज़ मेरे कान उनके 
बड़े ही शौक़ से फिर भी मैं ग़ज़ल कहता हूँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! ऋषभ शुक्ल जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...