Sunday, April 5, 2015

मुक्तक : 690 - कोई भी न जिस्म से पूरा


कोई भी न जिस्म से पूरा , सारे औने-पौने लोग ॥
ऊँची-ऊँची मीनारों पर , चढ़ तब क़द के बौने लोग ॥
सारे शह्र में अफ़रा-तफ़री , फैला देते हैं चुपचाप ,
आते हैं शेरों की खालें , ओढ़े जब , मृगछौने लोग ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...