Saturday, April 25, 2015

मुक्तक : 703 - ऐश-ओ-आराम की


ऐश-ओ-आराम की हसरत
 अज़ाब से पूरी ।।
आब-ए-ज़मज़म की ज़रूरत शराब से पूरी ।।
क्या बताएँ रे तुझे कैसे-कैसे की हमने ?
बारहा तेरी तलब सिर्फ़ ख़्वाब से पूरी !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...