Sunday, March 29, 2015

मुक्तक : 686 - और नहीं कुछ प्राण था वो


उसको विपल भर विस्मृत करना संभव नहीं हुआ ॥
प्रतिक्षण हृद ही हृद रोने से टुक रव नहीं हुआ ॥
और नहीं कुछ प्राण था वो पर उस बिन मैं ; सोचना ,
होगी मेरी क्या लौह-विवशता जो शव नहीं हुआ ?
[ विपल = पल का साठवाँ भाग / हृद ही हृद = दिल ही दिल में /टुक रव = थोड़ा सा भी शोर  ]
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अनूषा जैन जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...