Tuesday, March 3, 2015

मुक्तक : 679 - कभी दूर से


ये कहने का मुझसे सँभलकर चलाकर ;
कभी दूर से तो कभी पास आकर ;
मैं पूछूँ ज़माने से क्या हक़ है उनको ,
जो चलते हैं ख़ुद लड़खड़ा-लड़खड़ाकर ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...