चीत्कार-क्रंदन से लथपथ
एक विहँसता गान मिला
॥
जैसे इक लघु सर्प नेवले
से करता हो महायुद्ध
।
जैसे इक मूषक बिल्ली पर
भय तजकर हो रहा क्रुद्ध
।
आँधी से इक दीप जूझ
तम का करते अवसान मिला ॥
जैसे कोई नंगे पाँवों
काई पर सरपट भागे ।
जैसे पीछे भूखे सिंह से
हिरण बचे आगे-आगे ।
वर्षा से गलने से बचता
कच्चा खड़ा मकान मिला
॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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