मन दुःख से परिपूर्ण
आज ही मेरा साला ॥
और आज ही पर्व ये
उजले रंगों वाला ॥
हर्षित होंगे शत्रु मुझे
तक-तक पीड़ा में ,
सोचूँ ! ढँक रक्खूँ या
पोत लूँ मुख पे काला
॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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