Saturday, March 14, 2015

मुक्तक : 681 - अदा उम्र भर फर्ज़ हमने किये


कभी भूलकर ना किसी को ज़रा भी ,
कोई चोट पहुँचाई और ना रुलाया ।।
अदा उम्र भर फर्ज़ हमने किये और ,
हर इक क़र्ज़मयसूद हमने चुकाया ।।
यही इक गुनह वज़्हे मस्रूफ़ियत हम ,
से बेशक़ हुआ है कि सच चाहकर भी ,
न मस्जिद में जाकर नमाजें अता कीं ,
न मंदिर में जाकर कभी सिर झुकाया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...