कभी भूलकर ना किसी को ज़रा भी ,
कोई चोट पहुँचाई और ना रुलाया ।।
अदा उम्र भर फर्ज़ हमने किये और ,
हर इक क़र्ज़मयसूद हमने चुकाया ।।
यही इक गुनह वज़्हे मस्रूफ़ियत हम ,
से बेशक़ हुआ है कि सच चाहकर भी ,
न मस्जिद में जाकर नमाजें अता कीं ,
न मंदिर में
जाकर कभी सिर झुकाया ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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