होली के हीले मुझको
बिरले ही ढंग से ॥
बिरले ही ढंग से ॥
तज सप्त-वर्ण रँगना
उसे अपने रंग से ॥
उसे अपने रंग से ॥
सोचूँ उसे न फिर
भी
हो उज्र कुछ भी जो –
हो उज्र कुछ भी जो –
गोली सा जा के
उसके
लग जाऊँ अंग से ॥
लग जाऊँ अंग से ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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