उसको विपल भर विस्मृत करना संभव नहीं हुआ ॥
प्रतिक्षण हृद ही हृद रोने से टुक रव नहीं हुआ
॥
और नहीं कुछ प्राण था वो पर उस बिन मैं ; सोचना ,
होगी मेरी क्या लौह-विवशता जो शव नहीं हुआ ?
[ विपल = पल का साठवाँ भाग / हृद ही हृद = दिल ही दिल में /टुक रव = थोड़ा सा भी शोर ]
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
धन्यवाद ! अनूषा जैन जी !
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