Sunday, November 30, 2014

मुक्तक : 648 - लुत्फ़ को अपने ही


लुत्फ़ को अपने ही हाथों से शूल करता हूँ ।।
जानते-बूझते ये कैसी भूल करता हूँ ?
जिसका हक़दार , न हूँ क़ायदे से मैं क़ाबिल ,
उसकी दिन-रात तमन्ना फिज़ूल करता हूँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...