Tuesday, November 18, 2014

मुक्तक : 641 - दिल-दिमाग़


दिल-दिमाग़ कई-कई दिन झगड़े-लड़े मगर ॥
इश्क़ न करने की ज़िद पर ख़ूब अड़े मगर ॥
ना-ना करते-करते प्यार के मक्खन में ,
अज सर ता पा दोनों आख़िर गड़े मगर ॥
(अज सर ता पा = सिर से पाँव तक )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 






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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...