Thursday, November 6, 2014

154 : ग़ज़ल - तेरी इच्छा


तेरी इच्छा तू उज्ज्वल या काला दे ।।
रँग कैसा भी रूप लुभाने वाला दे ।।1।।
निःसन्देह सकल उपवन की चाह नहीं ,
किन्तु मुझे प्रत्येक पुहुप की माला दे ।।2।।
मृदु वचनों को दे स्वातंत्र्य तू तितली सा ,
कटु-कर्कश वाणी को मोटा ताला दे ।।3।।
रक्त-स्वेद से सींचींं फसलों को कृपया ,
वर शीतलता मत बर्फीला पाला दे ।।4।।
 वस्त्रविहीनों को दे सूती पोशाकें ,
मत चीवर , बाघंबर या मृगछाला दे ।।5।।
बेघर को इक पर्णकुटी , मछली को कुआँ ,
खग को रहने नीड़ , मकड़ को जाला दे ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! सुशील कुमार जोशी जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Kailash Sharma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...