Thursday, November 27, 2014

मुक्तक : 647 - कितनी मुद्दतों से


कि कितनी मुद्दतों से अब तलक भी दम बदम अटका ॥
बढ़ा मुझ तक कहाँ जाकर तेरा पहला क़दम अटका ?
तू जैसे भी हो आ जा देखने दिल से निकल अपलक ,
तेरे दीदार को मेरी खुली आँखों में दम अटका ॥
( दम बदम=निरंतर , दीदार=दर्शन , अपलक=बिना पलक झपके ,दम=प्राण )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

2 comments:

Kailash Sharma said...

वाह..बहुत सुन्दर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Kailash Sharma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...