Wednesday, November 12, 2014

मुक्तक : 636 - हाथ उठाकर


हाथ उठाकर आस्माँ से हम दुआ ॥
रात-दिन करते रहे तब ये हुआ ॥
कल तलक जिसके लिए थे हम नजिस ,
आज उसी ने हमको होठों से छुआ ॥
( नजिस = अछूत, अस्पृश्य , अपवित्र )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...