Sunday, November 16, 2014

मुक्तक : 639 - ज़िंदगी में चाहे


ज़िंदगी में चाहे बस इक बार चौंकाता ॥
यक ब यक आकर मेरे दर-दार चौंकाता ॥
मैं मरूँ जिस दुश्मने जाँ पे ख़ुदारा सच ,
काश वो भी मुझको करके प्यार चौंकाता ॥
( यक ब यक=अचानक, दार=घर, ख़ुदारा=ईश्वर के लिए, काश=हे प्रभु )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...