Monday, November 17, 2014

मुक्तक : 640 - एक-एक को दो


एक-एक को दो-तीन बनाने की फ़िक्र में ॥
सीटी को बंस-बीन बनाने की फ़िक्र में ॥
ताउम्र फड़फड़ाता दौड़ता फिरा किया,
बेहतर को बेहतरीन बनाने की फ़िक्र में ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति..

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...