Sunday, November 9, 2014

मुक्तक : 634 - चीज़ आड़ी तो


चीज़ आड़ी तो पड़ी भी खड़ी सी लगती है ॥
बूँदा-बाँदी भी बला की झड़ी सी लगती है ॥
दूर लगता है क़रीं , पास दूर दिखता है ,
आँखों में कुछ तो बड़ी गड़बड़ी सी लगती है ॥
( क़रीं = पास )
डॉ. हीरालाल प्रजापति

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (10-11-2014) को "नौ नवंबर और वर्षगाँठ" (चर्चा मंच-1793) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

onetoy said...

Bahot acha ji . . .

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Umesh Charan जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! सु-मन जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...