Monday, November 10, 2014

155 : ग़ज़ल - शायद मुझको कम दिखता है


शायद मुझको कम दिखता है ॥
ज़िंदा भी बेदम दिखता है ॥
वो मस्ती में गोते खाता ,
दीदा-ए-पुरनम दिखता है ?
छेड़ो मत उस चुप-चुप से को ,
पूरा ज़िंदा बम दिखता है ॥
जाने क्यों मुझको वो फक्कड़,
इक शाहे-आलम दिखता है ?
वैसे वो दारू है ख़ालिस ,
यों आबे-ज़मज़म दिखता है ॥
तुमको ही बस ब्रह्मा-हरि वो ,
मुझको किंकर-यम दिखता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...