Tuesday, November 11, 2014

मुक्तक : 635 - हँसता-हँसता ये



हँसता-हँसता ये शाद उठता है ॥
दर्द ये नामुराद उठता है ॥
दुबका रहता है सामने सबके ,
सबके जाने के बाद उठता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत गहरे डाक्टर साहब

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अजय कुमार झा जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...