Tuesday, November 4, 2014

मुक्तक : 630 - फिर हुआ ना कुछ


फिर हुआ ना कुछ मुकम्मल रह गया सब अधबना ॥
जुस्तजू में ज़िंदगी की ज़िंदगी कर दी फ़ना ॥
जब फँसा दिल के गले में इश्क़ का लुक़मा मेरे ,
ना निगलते ही बना  ना तो उगलते ही बना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...