Thursday, November 6, 2014

मुक्तक : 631 - मेरी आँखों ने जो.


मेरी आँखों ने जो कल अपलक निहारा है ॥
वो विवशताओं का उल्टा खेल सारा है ॥
है अविश्वसनीय,अचरजयुक्त पर सचमुच ,
एक मृगछौने ने सिंहशावक को मारा है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बहुत खूब

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...