शायद मुझको कम दिखता है ॥
ज़िंदा भी बेदम दिखता है ॥
वो मस्ती में गोते खाता ,
दीदा-ए-पुरनम दिखता है ?
छेड़ो मत उस चुप-चुप से को ,
पूरा ज़िंदा बम दिखता है ॥
जाने क्यों मुझको वो फक्कड़,
इक शाहे-आलम दिखता है ?
वैसे वो दारू है ख़ालिस ,
यों आबे-ज़मज़म दिखता है ॥
तुमको ही बस ब्रह्मा-हरि वो ,
मुझको किंकर-यम दिखता है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
Ati sundar . . .
धन्यवाद ! Umesh Charan जी !
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