तेरी इच्छा तू उज्ज्वल या काला दे ।।
रँग कैसा भी रूप लुभाने वाला दे ।।1।।
निःसन्देह सकल उपवन की चाह नहीं
,
किन्तु मुझे प्रत्येक पुहुप की माला
दे ।।2।।
मृदु वचनों को दे स्वातंत्र्य तू
तितली सा ,
कटु-कर्कश वाणी को मोटा ताला दे ।।3।।
रक्त-स्वेद से सींचींं फसलों को कृपया
,
वर शीतलता मत बर्फीला पाला दे ।।4।।
वस्त्रविहीनों को दे सूती पोशाकें
,
मत चीवर , बाघंबर या मृगछाला दे ।।5।।
बेघर को इक पर्णकुटी , मछली को कुआँ ,
खग को रहने नीड़ , मकड़ को जाला दे ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
सुंदर !
बहुत सार्थक प्रस्तुति...
धन्यवाद ! सुशील कुमार जोशी जी !
धन्यवाद ! Kailash Sharma जी !
Post a Comment