मेरे आत्मीय फ़ेसबुक पाठकों ,
क्यों आप कहते रहते हो
कि लिखता हूँ 'मैं'
'उससे' अच्छा
'जो' मुझसे कई सालों बाद
जन्मा और
कविताई में उतरा ?
किन्तु फिर क्यों 'उसे'
अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में
आमंत्रित किया जाता है ?
'मुझे' गाँव की घरेलू
काव्य-गोष्ठियों से भी निमंत्रण नहीं मिलता !
क्या है आपके पास इसका कोई उत्तर ?
क्या आप मेरी पोस्ट की गई कविता को
सदैव ‘लाइक’ करके
उस पर फ़ेसबुकिया लिहाज वश
बिना पढे ही ‘वाह’ का कमेन्ट करते रहते हो ?
क्यो ?
क्या आपको नहीं पता ?
लोग कहते हैं कि
अच्छे कवि का पैमाना है -
उसे कवि सम्मेलनों में बुलाया
जाना ।
तो वह मुझसे अच्छा कवि हुआ
न कि मैं ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
1 let them not invite me but if I get @ one comment which comes from heartI have made my day.
धन्यवाद ! Asha Joglekar जी !
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