Sunday, June 9, 2013

95 : ग़ज़ल - हमको परखना ही हो


हमको परखना ही हो तो हँसकर के देखना ।।
पक्की कसौटियों पे न कसकर के देखना ।।1।।
आए हैं शब-ओ-रोज़ ही हम ज़ह्र फाँकते ,
आए न एतबार तो डसकर के देखना ।।2।।
ना तू ही जिन्न और न अलादीन मैं कोई ,
नाहक है फिर चिराग़ को घसकर के देखना ।।3।।
सूरज की रोशनी में तो चंदा भी है बुझा ,
जुगनूँ की चौंध दिन में तमस कर के देखना ।।4।।
रहते हैं चुप पर आता है हमको भी बोलना ,
चाहो मुबाहसा-ओ-बहस कर के देखना ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

4 comments:

Dr Anita Rathi said...

Waah bahot khoob ....

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Anita Rathi जी !

कवि महेश सोनी said...

वाह बहुत ही शानदार ग़ज़ल..

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! कवि महेश सोनी जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...