Saturday, June 8, 2013

मुक्तक : 248 - बात बात पर रो पड़ना


बात बात पर रो पड़ना मेरा किर्दार नहीं ।।
जिस्म भले कमजोर रूह हरगिज़ बीमार नहीं ।।
बचपन से ही सिर्फ चने खाए हैं लोहे के ,
नर्म-मुलायम कभी रहा अपना आहार नहीं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...