Tuesday, June 11, 2013

मुक्तक : 252 - सब हुए अत्याधुनिक


सब हुए अत्याधुनिक तू अब भी दकियानूस क्यों ?
सबकी चीते जैसी चालें तेरी अब भी मूस क्यों ?
ना सही अंदर से ऊपर से तो दिख शहरी यहाँ ,
सब हैं अप-टू-डेट इक तू ही मिसाले हूश क्यों ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक मुक्तक,आभार.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजेन्द्र कुमार जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...