Sunday, June 9, 2013

मुक्तक : 249 - मैंने नापा है


मैंने नापा है निगाहों में उसकी अपना क़द ।।
एक बिरवे से हो चुका वो ताड़ सा बरगद ।।
वो तो कब से मुझे मंजिल बनाए बैठा है ,
चाहिए मुझको भी अब उसको बना लूँ मक़्सद ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...