Tuesday, June 4, 2013

मुक्तक : 242 - खूब उथले हैंं

खूब उथले हैं खूब गहरों के ॥
दिल हैं काले सभी सुनहरों के ॥
नाक है सूँड जैसी नकटों की ,
कान हाथी से याँ पे बहरों के ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...